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कविता संवेदनशील और संस्कारों का जननी है । फिलो हिंदी क्लब, हिंदी विभाग, संत फिलोमिना कॉलेज (स्वायत्त), मैसूरु के द्वारा आयोजित 'राष्ट्रीय साप्ताहिक व्याख्यान माला, के तीसरा सत्र का आयोजन 22 जुलाई 2021 को हुआ । डॉ. विनोद ‘प्रसून’, वरिष्ठ कवि एवं लेखक

 कविता संवेदनशील  और संस्कारों का जननी है ।



फिलो हिंदी क्लब, हिंदी विभाग, संत फिलोमिना कॉलेज (स्वायत्त), मैसूरु के द्वारा आयोजित 'राष्ट्रीय साप्ताहिक व्याख्यान माला, के तीसरा सत्र का आयोजन 22 जुलाई 2021 को हुआ । डॉ. विनोद ‘प्रसून’, वरिष्ठ कवि एवं लेखक 

संसाधक सीबीएसई-सीओई, हिंदी विभागाध्यक्ष दिल्ली पब्लिक स्कूल, ग्रेटर नोएडा (उ.प्र)  इस कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता के रूप में उपस्थित थे । विषय रहा “हिंदी काव्य का भावात्मक पक्ष : सृजन, संवेदना, सौहार्द, सरसता की प्रेरणा”



कार्यक्रम का शुभारंभ  तहलिया यासमीन द्वितीय वर्ष की छात्रा के स्वागत भाषण से हुआ। अमित कुमार प्रथम वर्ष का छात्र ने मुख्य अतिथि का परिचय करवाया । 


डॉ विनोद प्रसून जी ने अपने व्याख्यान के द्वारा काव्य के भावनात्मक पक्ष पर प्रकाश डालें । उन्होंने संत कबीर दास, रैदास, नागार्जुन, माखनलाल चतुर्वेदी और आज के आधुनिक  कवियों के कालजयी रचानाओं को स्मरण किए। 

कविता में शिल्प का ध्यान होना चाहिए लेकिन भावनात्मक पक्ष, भावपूर्णता, निश्चित रुप से बहुत आवश्यक है। 

काव्य शब्द में समाहोत है कल्पनाशीलता, करुणिमता, कर्तव्यभूत, कौशल्य है । कवि आत्मसाक्षात्कार कर उसे लेखनी और कागज से उतारता है तो वह अमरवाणी बन जाती है। उन्होंने कहा

"साहित्य स्नेहीलता, सौहार्द सरसता देता है

सद्भावोका सहचर है यह छू लेता संवेदना।"



प्रश्नोंत्तर सत्र में विद्यालय के निशा एम, रिया कुमारी, अमित कुमार, राम कुमार पांडेय, सरस्वती  ने अपनी रचानाओं के साथ उपस्थित होकर अपने प्रश्नों को वक्ता के सम्मुख रखे। विनोद जी ने बहुत ही सार्थक रूप सभी प्रश्नों का उत्तर देते हुए सभी विद्यार्थियों की प्रशंसा की। 




कार्यक्रम का समापन सिस्टर जिटटी, द्वितीय वर्ष की छात्रा से हुई। डॉ पूर्णिमा उमेश, विभागाद्यक्ष, हिंदी विभाग जी ने कार्यक्रम का संचालन किया। 

श्रोता देश के विविध क्षेत्र से अनेक शिक्षक गण, हिंदी प्रेमी और विद्यार्थी इस कार्यक्रम में जुड़े थे। ?

                  👇👇👇👇👇👇👇👇👇                                मेरा देश मेरा वतन समाचार पत्र के

                                  
                         संंपादक श्री दयाशंकर गुुुप्ता जी    

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