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भारत निर्वाचन आयोग


भारत निर्वाचन आयोग

राजनैतिक दलों और अभ्यर्थियों के मार्गदर्शन के लिए आदर्श आचार संहिता




I.     सामान्‍य आचरण


1.  कोई दल या अभ्यर्थी ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो भिन्न-भिन्न जातियों और समुदायों,  चाहे वे धार्मिक या भाषायी हों, के बीच विद्यमान मतभेद को और अधिक बिगाड़े या परस्‍पर घृणा उत्पन्न करे या उनके बीच तनाव कारित करे।


2. जब राजनैतिक दलों की आलोचना की जाए, तो उसे उनकी नीतियों और कार्यक्रम, विगत रिकॉर्ड और कार्य तक ही सीमित रखा जाएगा। दल और अभ्यर्थी दूसरे दलों के नेताओं या कार्यकर्ताओं की निजी जिंदगी के ऐसे सभी पहलुओं की आलोचना करने से विरत रहेंगे जो उनकी सार्वजनिक गतिविधियों से नहीं जुड़ी हुई हैं। असत्यापित आरोपों या विकृति के आधार पर दूसरे दलों या उनके कार्यकर्ताओं की आलोचना करने से बचना होगा।


3. वोट हासिल करने के लिए जाति या संप्रदाय की भावनाओं के आधार पर कोई अपील नहीं की जाएगी। मस्जिदों, चर्चों, मंदिरों और पूजा के अन्य स्थानों का चुनाव प्रचार के मंच के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।


4.  सभी दल और अभ्यर्थी ऐसी सभी गतिविधियों से ईमानदारीपूर्वक परहेज करेंगे जो निर्वाचन विधि‍ के अधीन "भ्रष्ट आचरण" एवं अपराध हैं जैसे कि मतदाताओं को घूस देना, मतदाताओं को डराना-धमकाना, मतदाताओं का प्रतिरूपण करना, मतदान केंद्रों से 100 मीटर की दूरी के भीतर प्रचार करना, मतदान समाप्त होने के लिए नियत घंटे के साथ समाप्त होने वाले 48 घंटों की अवधि के दौरान सार्वजनिक बैठकें आयोजित करना, और मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक ले जाने और वापस लाने के लिए परिवहन और वाहन की व्यवस्था करना ।


5.  शांतिपूर्ण और बेफ़िक्र गृह (पारिवारिक) जीवन के प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार का सम्मान किया जाएगा, फिर चाहे राजनीतिक दल और अभ्यर्थी उसके राजनीतिक अभिमत या गतिविधियों को कितना भी नापसंद क्यों न करते हों। लोगों के अभिमत या गतिविधियों के प्रति विरोध जतलाने के लिए उनके  घरों के सामने किसी भी परिस्थिति में न तो प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा और न ही धरना दिया जाएगा।


6.  कोई भी राजनैतिक दल या अभ्यर्थी अपने अनुयायियों को किसी भी व्यक्ति की अनुमति के बिना उसकी भूमि, भवन, परिसर की दीवारों इत्यादि पर झंडा लगाने, बैनर लटकाने, सूचना चिपकाने, नारा लिखने इत्यादि की अनुमति नहीं देगा।


7.  राजनैतिक दल और अभ्यर्थी यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके समर्थक दूसरे दलों द्वारा आयोजित बैठकों  और जुलूसों में न तो बाधा खड़ी करें और न ही उन्‍हें भंग करें। एक राजनैतिक दल के कार्यकर्ता या हमदर्द राजनैतिक दल द्वारा आयोजित सार्वजनिक बैठकों में मौखिक या लिखित रूप में प्रश्न पूछकर या अपनी स्वयं की पार्टी के पर्चे बांटकर अव्यवस्था उत्पन्न नहीं करेंगे। एक दल द्वारा उन स्थानों के आसपास जुलूस न निकाला जाएगा जहां दूसरे दल द्वारा बैठकें आयोजित की गई हों। एक दल के द्वारा लगाए गए पोस्टर दूसरे दल के कार्यकर्ताओं द्वारा नहीं हटाए जाएंगे।

II.    बैठक (सभा)


दल या अभ्यर्थी किसी भी प्रस्तावित बैठक के स्थान और समय के बारे में स्थानीय पुलिस प्राधिकारियों को समय रहते सूचित करेंगे ताकि पुलिस यातायात को नियंत्रित करने और शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक व्यवस्थाएं कर सके।

दल या अभ्यर्थी पहले से ही इस बात का अभिनिश्चयन करेगा कि क्‍या बैठक के लिए प्रस्तावित स्थान में कोई प्रतिबंधात्मक या निषेधात्मक आदेश प्रवृत्त हैं या नहीं और यदि ऐसे आदेश मौजूद हैं, तो उनका कड़ाई से पालन किया जाएगा। यदि ऐसे आदेशों से किसी रियायत की आवश्यकता हो, तो उसके लिए समय रहते आवेदन किया जाएगा और वह आदेश प्राप्त किया जाएगा।

यदि किसी प्रस्तावित बैठक  के संबंध में लाउडस्पीकरों या किसी अन्य सुविधा के उपयोग के लिए अनुमति या अनुज्ञा प्राप्त की जानी हो, तो दल या अभ्यर्थी संबंधित प्राधिकारी  को समय रहते आवेदन करेगा और वह अनुमति या अनुज्ञा प्राप्त करेगा।

बैठक के आयोजक बैठक में विध्न डालने वाले या अन्यथा अव्यवस्था उत्पन्न करने का प्रयास करने वाले व्यक्तियों से निपटने के लिए ड्यूटी पर तैनात पुलिस की निरपवाद रूप से सहायता प्राप्त करेगा।  आयोजक स्‍वयं ऐसे व्‍यक्तियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करेंगे।

 


III. जलूस


जलूस का आयोजन करने वाला दल या अभ्यर्थी जलूस शुरू करने के स्थान और समय, अनुगमन किए जाने वाले रूट और जलूस समाप्त होने के स्थान और समय के बारे में पहले से निर्णय करेगा। सामान्यतया कार्यक्रम से कोई विचलन नहीं होगा।

आयोजक स्थानीय पुलिस प्राधिकारियों को कार्यक्रम की अग्रिम सूचना देंगे ताकि वे आवश्यक व्यवस्था कर सकें।

आयोजक इस बात का अभिनिश्चयन करेंगे कि जिन इलाकों से जलूस को गुजरना है, क्‍या उन इलाकों में कोई प्रतिबंधात्मक  आदेश प्रवृत्त हैं और वे प्रतिबन्ध आदेशों का पालन करेंगे बशर्ते सक्षम प्राधिकारी द्वारा विशेष रूप से रियायत न दी गई हो। यातायात संबंधी किन्‍हीं विनियमों या प्रतिबंधों का भी ध्‍यानपूर्वक अनुपालन किया जाएगा।

आयोजक जलूस गुजारने  (निकालने) के लिए पहले से व्यवस्था करने हेतु कदम उठाएंगे ताकि यातायात में कोई रुकावट या बाधा न आए। यदि जलूस बहुत लंबा है, तो उसे उचित लंबाइयों के हिस्सों में आयोजित किया जाएगा, ताकि सुविधाजनक अंतरालों पर, विशेष रूप से उन स्थानों पर जहां जलूस को सड़क का चौराहा पार करना है, रुके हुए यातायात को चरणों में छोड़े जाने की अनुमति दी जा सके ताकि यातायात में अत्यधिक भीड़-भाड़ से बचा जा सके।

जलूस इस प्रकार से नियंत्रित किया जाएगा कि वह जहां तक संभव हो सके, सड़क के दाहिने तरफ रहे और ड्यूटी पर तैनात पुलिस के निदेश और सलाह का कड़ाई से अनुपालन किया जाएगा।

यदि दो या अधिक राजनीतिक दल या अभ्यर्थी जलूस एकसमान मार्ग या उसके हिस्सों पर लगभग एक ही समय पर निकालने का प्रस्ताव रखते हैं, तो यह सुनिश्चित करने के लिए कि जलूस आपस में न टकराएं या यातायात में बाधा उत्पन्न न करें, आयोजक काफी समय रहते संपर्क करेंगे और किए जाने वाले उपायों के बारे में निर्णय लेंगे। संतोषजनक व्यवस्था कायम करने के लिए स्थानीय पुलिस की सहायता ली जाएगी। इस उद्देश्य के लिए,  पार्टियां पुलिस से यथाशीघ्र संपर्क करेंगी।

राजनीतिक दल या अभ्यर्थी, जलूस में ऐसी वस्तुएं आदि साथ लेकर चलने वाले लोगों के मामले में अधिकतम संभव सीमा तक नियंत्रण रखेंगे जिनका अवांछनीय तत्वों द्वारा, विशेष रूप से उत्तेजना के पलों में, दुरुपयोग किया जा सके।

किसी भी राजनीतिक दल या अभ्यर्थी द्वारा दूसरे राजनीतिक दलों के सदस्‍य या उनके नेताओं को निरूपित करने के लिए तात्पर्यित पुतलों को ढोना, जनता में ऐसे पुतलों को जलाना और इस तरह के दूसरे प्रदर्शनों का समर्थन नहीं किया जाएगा।

 


IV.   मतदान के दिन


सभी राजनीतिक दल और अभ्यर्थी-


यह सुनिश्चित करने के लिए कि मतदान क्रिया शांतिपूर्ण एवं सुव्यवस्थित रूप से सम्पन्न हो और मतदाताओं को कोई परेशानी या बाधा से गुजरे बगैर मत देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने में पूरी आजादी रहे, निर्वाचन ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों के साथ सहयोग करेंगे।

अपने अधिकृत कार्यकर्ताओं को उपयुक्त बैज या  पहचान पत्रों की आपूर्ति करेंगे।

इस बात पर सहमति देंगे कि उनके द्वारा मतदाताओं को उपलब्ध कराई गई पहचान पर्ची सादे (सफ़ेद) कागज पर होगी और उस पर कोई प्रतीक, अभ्यर्थी का नाम या दल का नाम अंतर्विष्ट नहीं होगा।

मतदान के दिन और उससे पहले के अड़तालीस घंटों के दौरान पहले शराब परोसने या बांटने से दूर रहेंगे।

राजनीतिक दलों और अभ्यर्थियों द्वारा मतदान बूथों के निकट स्थापित किए गए शिविरों के निकट अनावश्यक रूप से भीड़ इकट्ठा नहीं होने देंगे ताकि दलों  और अभ्यर्थी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच टकराव और तनाव से बचा जा सके।

सुनिश्चित करेंगे कि अभ्यर्थी के शिविर सरल और सहज हो। वे कोई पोस्टर, झंडा, प्रतीक, या कोई अन्य प्रचार सामग्री प्रदर्शित नहीं करेंगे। न तो  कोई खाद्य सामग्री परोसी जाएगी और न ही भीड़ को शिविरों में इकट्ठा होने की अनुमति दी जाएगी।

मतदान के दिन वाहनों को चलाए जाने पर अधिरोपित किए जाने वाले प्रतिबंधों के अनुपालन में प्राधिकारियों के साथ सहयोग करेंगे और उनके लिए अनुज्ञापत्र प्राप्त करेंगे जिन्हें  उन वाहनों पर प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिए।

 


V. मतदान बूथ


 


मतदाताओं को छोड़कर, ऐसा कोई व्यक्ति मतदान बूथ के भीतर प्रवेश नहीं करेगा जिसके पास निर्वाचन आयोग का कोई मान्य पास नहीं है।


 


VI. प्रेक्षक


निर्वाचन आयोग प्रेक्षक नियुक्त करता है। यदि अभ्यर्थियों या उनके अभिकर्ताओं को निर्वाचनों के संचालन के संबंध में कोई विशेष शिकायत या समस्या है, तो वे उसे प्रेक्षक के ध्यान में ला सकते हैं।


 


VII. सत्ताधारी दल


सत्ताधारी दल, चाहे वे केन्द्र में या संबंधित राज्य या राज्यों में हों यह सुनिश्चित करेगा कि इस बात के लिए कोई शिकायत का मौका न दिया जाए कि उन्‍होंने अपने निर्वाचन अभियान के प्रयोजनार्थ अपनी आधिकारिक स्थिति का उपयोग किया है और विशेष रूप से –


 


(क) मंत्रीगण अपने आधिकारिक दौरे को न तो निर्वाचन प्रचार कार्य के साथ जोड़ेंगे और न ही निर्वाचन प्रचार कार्यों के दौरान सरकारी मशीनरी या कार्मिक का उपयोग करेंगे।

(ख) सत्ताधारी दल के हित को बढ़ावा देने के लिए सरकारी विमानों, वाहनों, मशीनरी और कार्मिक सहित सरकारी परिवहन का उपयोग नहीं करेंगे;


चुनावी बैठकें आयोजित करने के लिए मैदानों इत्यादि जैसे सार्वजनिक स्थानों, और हवाई उड़ानों के लिए चुनावों के संबंध में एयर-फ्लाइटों के लिए हेलीपैड के उपयोग पर उसका (सत्ताधारी दल) एकाधिकार नहीं होगा। अन्य दलों और अभ्यर्थियों को उन्हीं नियमों और शर्तों पर ऐसे स्थानों और सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी जिन नियमों और शर्तों पर सत्ताधारी दल द्वारा उनका उपयोग किया जाता है;

विश्राम गृहों, डाक बंगलों या अन्य सरकारी आवासों पर सत्ताधारी दल या उसके अभ्यर्थियों का  एकाधिकार नहीं होगा और अन्य दलों और अभ्यर्थियों को इन आवासों का निष्पक्ष ढंग से उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी किन्तु कोई भी दल या अभ्यर्थी इन आवासों (उसके अंतर्गत मौजूद परिसरों सहित) का उपयोग न तो चुनाव अभियान कार्यालय के रूप में और न ही निर्वाचन प्रचार के प्रयोजनार्थ कोई सार्वजनिक सभा आयोजित करने के लिए करेगा और न ही ऐसा करने की अनुमति दी जाएगी;

सत्तासीन दल की संभावनाओं को बढ़ावा देने की दृष्टि से निर्वाचन अवधि के दौरान समाचार पत्रों और अन्य संचार माध्यमों मे सार्वजनिक राजकोष की लागत से विज्ञापन जारी करने और राजनीतिक खबरों और प्रचार-प्रसार को पक्षपातपूर्ण कवरेज के लिए आधिकारिक जन संचार माध्यमों के दुरुपयोग से ईमानदारी से परहेज करना चाहिए।

मंत्री और अन्य प्राधिकारी आयोग द्वारा निर्वाचनों की घोषणा के समय से विवेकाधीन निधियों से अनुदान/भुगतान मंजूर  नहीं करेंगे; और

आयोग द्वारा निर्वाचनों की घोषणा के समय से, मंत्री और अन्य प्रधिकारी -

 


(क) किसी भी रूप में कोई भी वित्तीय अनुदान या उसे दिए जाने के वादे की घोषणा नहीं करेंगे; या


(ख) (लोक सेवकों के सिवाय) किसी भी प्रकार की परियोजनाओं या योजनाओं का शिलान्यास इत्यादि नहीं करेंगे; या


(ग)   सड़क निर्माण, पेय जल सुविधाओं की व्यवस्था इत्यादि का कोई वादा नहीं करेंगे; या      


(घ)   सरकारी, लोक उपक्रमों इत्यादि में कोई भी ऐसी तदर्थ नियुक्तियां नहीं करेंगे जिसका मतदाताओं को सत्ताधारी दल के पक्ष में प्रभावित करने का असर पड़ता हो।


 


नोट : आयोग किसी भी निर्वाचन की तारीख घोषित करेगा, वह तारीख होगी जो सामान्यतया  उस तारीख से तीन सप्ताह से अधिक पहले नहीं होगी जब ऐसे निर्वाचनों के संबंध में अधिसूचना जारी किए जाने की संभावना हो।


 


केन्द्र या राज्य सरकार के मंत्री, अभ्यर्थी या मतदाता या प्राधिकृत अभिकर्ता के रूप में अपनी हैसियत के सिवाय किसी मतदान केन्द्र या मतगणना स्थल में प्रवेश नहीं करेंगे।

 


VIII. निर्वाचन घोषणा पत्र पर दिशानिर्देश


उच्‍चतम न्‍यायालय ने वर्ष 2008 की एसएलपी (सी) सं. 21455 (एस. सुब्रमणियम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार एवं अन्य) में अपने निर्णय दिनांक 5 जुलाई 2013 में निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया है कि यह सभी मान्यता प्राप्त राजनैतिक दलों से परामर्श करके चुनावी घोषणा पत्रों की विषयवस्तु के संबंध में दिशानिर्देश तैयार करे। वे मार्गदर्शी सिद्धांत जिनसे ऐसे दिशानिर्देशों को तैयार किए जाने का मार्ग प्रशस्त होगा, उक्त निर्णय से नीचे उद्घृत किए गए है: -

 


(i) "हालांकि, कानून स्पष्ट है कि चुनावी घोषणा पत्र लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के अंतर्गत 'भ्रष्ट आचरण' नहीं माने जा सकते, फिर भी, इस वास्तविकता से इनकार नहीं किया जा सकता कि किसी भी रूप में मुफ्त वस्तुओं आदि के वितरण से, नि:संदेह सभी लोग प्रभावित होते हैं। यह काफी हद तक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचनों की बुनियाद को अस्त-व्यस्त कर देता है।"


 


(ii) "चुनावों में चुनाव लड़ने वाले दलों और अभ्यर्थियों को एक समान अवसर उपलब्ध कराए जाने का सुनिश्चय करने के लिए और यह देखने के लिए कि भी निर्वाचन प्रक्रिया की शुचिता दूषित न हो जाए, निर्वाचन आयोग पहले भी आदर्श आचार संहिता के अधीन अनुदेश जारी करता रहा है। शक्तियों का वह स्रोत जिसके अधीन आयोग ये आदेश जारी करता है, वह संविधान का अनुच्छेद 324 है जो आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन आयोजित करने का अधिदेश देता है।"


 


(iii) "हम इस तथ्य के प्रति सचेत हैं कि सामान्यतया राजनीतिक दल निर्वाचन की तारीख की घोषणा से पहले अपना निर्वाचन घोषणा पत्र जारी कर देते हैं, उस स्थिति में, साफ-साफ शब्दों में कहा जाए तो निर्वाचन आयोग के पास ऐसे किसी कृत्य को विनियमित करने का प्राधिकार नहीं होगा जो निर्वाचन की तारीख की घोषणा से पूर्व की गई हो। तो भी, इस संबंध में अपवादस्वरुप कार्य किया जा सकता है क्योंकि चुनावी घोषणा पत्र का प्रयोजन निर्वाचन प्रक्रिया से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है।"


 


माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय का उपर्युक्त निर्देश मिलने पर, निर्वाचन आयोग ने इस मामले में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्यीय राजनीतिक दलों से परामर्श करने के लिए उनके साथ बैठक की और इस मामले में उनके परस्‍पर विरोधी अभिमत को नोट किया।

 


परामर्श के दौरान,  जबकि कुछ राजनीतिक दल  ऐसे दिशानिर्देश  जारी किए जाने के समर्थन में थे, वही दूसरे दलों की राय यह थी कि एक स्वस्थ लोकतांत्रिक राज-व्यवस्था में घोषणा पत्रों में ऐसे ऑफर देना और वादे करना मतदाताओं के प्रति उनका अधिकार और कर्तव्य है। जबकि आयोग इस दृष्टिकोण से सिद्धांतत: सहमत है कि घोषणा पत्र तैयार करना राजनीतिक दलों का अधिकार है, फिर भी यह स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचनों के संचालन और सभी राजनीतिक दलों और अभ्यर्थियों के लिए एक समान अवसर उपलब्ध कराने पर कुछ वादों और ऑफरों के अवांछनीय प्रभाव की उपेक्षा नहीं कर सकता है।


 


संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयोग को इस बात के लिए अधिदेशित करता है कि यह अन्य निर्वाचनों के साथ-साथ संसद और राज्य विधान मंडलों के  निर्वाचनों का संचालन करे। उच्‍चतम न्‍यायालय के उपर्युक्त निर्देशों पर समुचित ध्‍यान रखकर और राजनीतिक दलों के साथ परामर्श करने के बाद, आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचनों के हित में, एतद्द्वारा निर्देश देता है कि राजनीतिक दल और अभ्यर्थी संसद या राज्य विधान मंडलों के किसी भी निर्वाचन के लिए निर्वाचन घोषणा पत्र जारी करते समय निम्नलिखित दिशानिर्देशों का पालन करेंगे -

 


(i) निर्वाचन घोषणा पत्र में संविधान में प्रतिष्ठापित आदर्शों और सिद्धांतों के प्रतिकुल कुछ भी अंतर्विष्ट नहीं होगा और यह भी कि यह आदर्श आचार संहिता के अन्य उपबंधों की मूल भावना के साथ सुसंगत होगा।


 


(ii) संविधान में प्रतिष्ठापित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत राज्य को इस बात का निर्देश देते हैं कि वह नागरिकों के लिए विभिन्न प्रकार के कल्याणकारी उपाय करे और इसलिए, निर्वाचन घोषणा पत्रों में ऐसे कल्याणकारी उपायों के वादे के प्रति कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। हालांकि, राजनीतिक दलों को वैसे वादे करने से परहेज करना चाहिए जिनसे निर्वाचन प्रक्रिया की शुचिता दूषित होने की संभावना हो और न ही अपने मताधिकार का प्रयोग करने में मतदाताओं पर अनुचित प्रभाव डालना चाहिए।


 


(iii) पारदर्शिता, सभी को एकसमान अवसर उपलब्ध कराने के सिद्धांत और वादों की विश्वसनीयता के हित में, यह अपेक्षा की जाती है कि घोषणा पत्र वादों के तर्काधार को भी प्रतिबिंबित करे और मोटे तौर पर उसके लिए वित्तीय जरूरतों को पूरी करने के अर्थोपायों को इंगित करे। केवल उन्हीं वादों पर मतदाताओं का भरोसा मांगा जाना चाहिए जिन्हें पूरा किया जाना संभव हो।


 


निर्वाचन(नों) के दौरान घोषणा पत्र जारी करने की निषेधात्मक अवधि

 


(i)    एकल चरण निर्वाचन की दशा में, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 के अंतर्गत यथा-विहित निषेधात्मक अवधि के दौरान घोषणा पत्र  जारी नहीं किया जाएगा।


 


(ii)   बहु-चरणीय निर्वाचनों की दशा में, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 के अंतर्गत उन निर्वाचनों के सभी चरणों की यथा-विहित निषेधात्मक अवधियों के दौरान घोषणा पत्र जारी  नहीं किया जाएगा।


 

🙏🙏 🙏

आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct - MCC) मुख्य रूप से राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और सत्तारूढ़ पार्टी पर लागू होती है, ताकि चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र हों। लेकिन यह सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी अप्रत्यक्ष रूप से लागू होती है, क्योंकि यह सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग को रोकती है।

क्या सरकारी कार्यालय बंद कर सकते हैं या काम रोक सकते हैं चुनाव के बहाने?

नहीं, बिल्कुल नहीं।

आचार संहिता लागू होने पर दैनिक रूटीन सरकारी कामकाज जारी रहते हैं। नए प्रोजेक्ट की घोषणा, शिलान्यास, वित्तीय अनुदान या नीतिगत फैसले नहीं हो सकते, लेकिन आम जनता से जुड़े नियमित काम जैसे:

पेंशन बनवाना

प्रमाणपत्र जारी करना

लाइसेंस

राशन कार्ड

अन्य आवश्यक सेवाएं

ये सब जारी रहनी चाहिए।

सरकारी कार्यालयों को बंद करना या लोगों को "चुनाव का बहाना" बनाकर भगाना आचार संहिता का उल्लंघन माना जाता है और यह सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी में लापरवाही भी है। चुनाव आयोग के दिशानिर्देश स्पष्ट हैं कि रूटीन कामकाज नहीं रुकना चाहिए।

अगर अधिकारी ऐसा करते हैं तो क्या कार्रवाई हो सकती है?

हाँ, कार्रवाई हो सकती है:

शिकायत करें: जिले के District Election Officer (आमतौर पर जिलाधिकारी/कलेक्टर) या चुनाव आयोग की cVIGIL ऐप पर शिकायत दर्ज करें। चुनाव पर्यवेक्षक (Observer) को भी बता सकते हैं।

संभावित कार्रवाई:

अधिकारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई (सस्पेंशन, शो-कॉज नोटिस आदि)।

अगर यह MCC उल्लंघन माना गया, तो चुनाव आयोग ट्रांसफर या अन्य दंड दे सकता है।

गंभीर मामलों में सेवा नियमों (जैसे CCS Rules) के तहत सजा।

चुनाव आयोग पहले भी ऐसे मामलों में अधिकारियों पर कार्रवाई कर चुका है, जैसे MCC उल्लंघन में प्रचार करने वाले कर्मचारियों को निलंबित करना।

अगर आपके साथ ऐसा हो रहा है, तो तुरंत शिकायत करें – नाम, तारीख, कार्यालय का विवरण दें। चुनाव आयोग की वेबसाइट (eci.gov.in) या हेल्पलाइन 1950 पर भी संपर्क कर सकते हैं। यह जनता का अधिकार है कि सरकारी सेवाएं चुनाव के बावजूद मिलें।🙏

 आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct - MCC) लागू होने पर भारत में निर्वाचन आयोग (ECI) की गाइडलाइंस के अनुसार:

दैनिक रूटीन सरकारी कामकाज और नियमित प्रशासनिक कार्य जारी रहते हैं। सरकारी विभागों का दिन-प्रतिदिन का कामकाज, जैसे वेतन वितरण, आवश्यक सेवाएं (बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि), आपातकालीन कार्य और पहले से चल रही योजनाओं का सामान्य क्रियान्वयन बिना रुकावट के चलता रहता है।

चल रही योजनाओं (ongoing schemes) का लाभ वितरण भी जारी रह सकता है, बशर्ते वे पहले से शुरू हो चुकी हों और उनका उपयोग चुनावी लाभ के लिए न किया जाए। उदाहरण के लिए, पहले से पूरी हो चुकी परियोजनाओं का उद्घाटन या उपयोग जनहित में जारी रह सकता है।

लेकिन निषिद्ध कार्य निम्नलिखित हैं:

नई परियोजनाओं या योजनाओं की घोषणा नहीं की जा सकती।

नई परियोजनाओं का शिलान्यास, लोकार्पण या भूमिपूजन नहीं हो सकता।

नए वित्तीय अनुदान, सब्सिडी या वित्तीय वादे (financial grants/payments from discretionary funds) की घोषणा वर्जित है।

नई नीतिगत फैसले या ऐसे अधूरी घोषणाएं जो मतदाताओं को प्रभावित कर सकें, नहीं किए जा सकते।

सरकारी मशीनरी, संसाधनों या विज्ञापनों का चुनाव प्रचार के लिए दुरुपयोग नहीं हो सकता।

ये नियम सत्ता में बैठी पार्टी को अनुचित लाभ लेने से रोकने के लिए हैं, ताकि चुनाव निष्पक्ष रहें। MCC का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को स्वतंत्र और पारदर्शी बनाना है, लेकिन यह सरकारी कामकाज को पूरी तरह रोकता नहीं है – केवल चुनावी प्रभाव वाली नई गतिविधियों पर रोक लगाता है।

यदि कोई विशिष्ट उदाहरण या वर्तमान चुनाव संबंधी अपडेट चाहिए, तो बताएं!🙏🙏

आपका कथन आंशिक रूप से सही है, लेकिन पूरी तरह सटीक नहीं। चुनाव आयोग (ECI) के आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct - MCC) के दिशानिर्देशों के अनुसार, रूटीन सरकारी कामकाज जारी रहना चाहिए और नई योजनाओं की घोषणा, उद्घाटन या राजनीतिक लाभ वाली गतिविधियों पर रोक है। हालांकि, मतदान के दिन (polling day) सरकारी कार्यालयों को बंद करना या पेड हॉलिडे घोषित करना MCC का उल्लंघन नहीं है — बल्कि यह कानूनी रूप से अनिवार्य है।

मुख्य बिंदु:

मतदान के दिन पेड हॉलिडे अनिवार्य: Representation of the People Act, 1951 की धारा 135B के तहत, सभी नियोक्ता (सरकारी और निजी दोनों) को मतदान वाले क्षेत्र में अपने कर्मचारियों को पेड हॉलिडे देना जरूरी है, ताकि वे वोट डाल सकें। यह केंद्र और राज्य सरकारों पर भी लागू होता है। चुनाव आयोग हर चुनाव में इसकी याद दिलाता है और राज्य सरकारें सार्वजनिक अवकाश घोषित करती हैं।

MCC का फोकस: MCC मुख्य रूप से सत्ताधारी दल को सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने से रोकता है (जैसे नई घोषणाएं, अनुदान, ट्रांसफर आदि)। लेकिन मतदान के दिन अवकाश घोषित करना वोटिंग को बढ़ावा देने के लिए है, न कि कोई राजनीतिक बहाना। यह MCC का उल्लंघन नहीं माना जाता।

रूटीन कामकाज नहीं रुकना चाहिए: MCC के दौरान सामान्य प्रशासनिक कार्य (जैसे पेंशन, लाइसेंस, चल रहे विकास कार्य) जारी रहते हैं। लेकिन polling day पर अवकाश अलग मामला है — यह वोटर turnout बढ़ाने के लिए कानूनी प्रावधान है।

लापरवाही का सवाल: यदि कोई अधिकारी बिना वजह कार्यालय बंद करता है या जनता को भगाता है (जब अवकाश न हो), तो यह ड्यूटी में लापरवाही हो सकती है। लेकिन polling day पर घोषित अवकाश कानूनी है।

यदि कोई विशिष्ट घटना या क्षेत्र की बात है जहां कार्यालय अनावश्यक रूप से बंद किए जा रहे हैं, तो उसकी शिकायत चुनाव आयोग या जिला निर्वाचन अधिकारी से की जा सकती है। ECI के दिशानिर्देश स्पष्ट हैं कि निष्पक्ष चुनाव के लिए रूटीन काम प्रभावित न हो, लेकिन वोटिंग को प्राथमिकता दी जाती है।🙏🙏🙏

आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct - MCC) लागू होने पर निर्वाचन आयोग (ECI) की गाइडलाइंस के अनुसार, दैनिक रूटीन सरकारी कामकाज और नियमित प्रशासनिक कार्य जारी रहते हैं। MCC मुख्य रूप से सत्तारूढ़ दल को चुनाव में अनुचित लाभ लेने से रोकती है, जैसे नई योजनाओं की घोषणा, फाउंडेशन स्टोन रखना या सरकारी मशीनरी का चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल। लेकिन रूटीन एडमिनिस्ट्रेटिव वर्क (जैसे सरकारी कार्यालयों में सामान्य सेवाएं, प्रमाणपत्र जारी करना, पेंशन, लाइसेंस आदि) बंद नहीं होते। जारी योजनाओं का लाभार्थी-उन्मुख काम (ongoing beneficiary schemes) जारी रह सकता है, लेकिन नई सैंक्शन नहीं की जा सकती।

अधिकारियों द्वारा काम न करना या बहाना बनाना

अगर अधिकारी या कर्मचारी इलेक्शन ड्यूटी का बहाना बनाकर कार्यालय बंद रखते हैं, बल्कि कर्तव्य की उपेक्षा (dereliction of duty) और सर्विस रूल्स का उल्लंघन है। ECI की गाइडलाइंस स्पष्ट हैं कि रूटीन प्रशासनिक कार्य जारी रहने चाहिए। इलेक्शन ड्यूटी पर लगे कर्मचारी भी अपने सामान्य डिपार्टमेंट के रूटीन काम प्रभावित नहीं कर सकते अगर वे उपलब्ध हैं।

अधिकारियों पर क्या कार्रवाई हो सकती है?

ऐसे मामलों में कार्रवाई हो सकती है:

डिपार्टमेंटल इंक्वायरी → चेतावनी, सैलरी कटौती, प्रमोशन रोकना आदि।

सस्पेंशन → गंभीर लापरवाही या बार-बार शिकायत पर।

नौकरी जाना (dismissal) → बहुत गंभीर मामलों में संभव है, लेकिन आमतौर पर पहले इंक्वायरी होती है।

अगर परेशान करना या भ्रष्टाचार (जैसे पैसे मांगना) शामिल है, तो IPC की संबंधित धाराओं के तहत केस भी दर्ज हो सकता है। ECI खुद ऐसे मामलों में सीधे सस्पेंड नहीं करती (जैसे राजनीतिक कैंपेनिंग करने पर करती है), लेकिन शिकायत पर District Election Officer (DEO) या Observer जांच करवा सकता है और संबंधित डिपार्टमेंट को एक्शन लेने का निर्देश दे सकता है।

शिकायत कहां और कैसे करें?

ऐसे अधिकारियों की लापरवाही, परेशान करने या बहाना बनाने की शिकायत निम्न जगहों पर करें:

निर्वाचन आयोग की cVIGIL ऐप — MCC उल्लंघन या चुनाव संबंधित शिकायतों के लिए बेस्ट है (फोटो/वीडियो अपलोड कर सकते हैं, 100 मिनट में एक्शन)।

ECI का National Grievance Services Portal — https://eci.gov.in/ngsp/ पर ऑनलाइन रजिस्टर करें। या ईमेल: complaints@eci.gov.in।

वोटर हेल्पलाइन नंबर — 1950 (टोल फ्री) पर कॉल करें।

District Election Officer (DEO) या Returning Officer (RO) के कार्यालय में लिखित शिकायत दें (जिले के कलेक्टर आमतौर पर DEO होते हैं)।

ECI Observer (चुनाव के दौरान नियुक्त) से मिलकर शिकायत करें – वे तुरंत जांच करवाते हैं।

अगर सामान्य सरकारी लापरवाही है (MCC से अलग), तो संबंधित डिपार्टमेंट के हेड या राज्य के लोकायुक्त/विभागीय ग्रिवांस पोर्टल पर भी शिकायत करें।

शिकायत में विस्तार से विवरण दें: अधिकारी का नाम, कार्यालय, तारीख, क्या हुआ, और अगर可能 तो सबूत (फोटो, रिकॉर्डिंग)। ट्रैकिंग ID मिलेगा, जिससे फॉलो-अप कर सकते हैं। ECI शिकायतों पर तेजी से एक्शन लेता है, खासकर चुनाव के दौरान। अगर वरिष्ठ नागरिक हैं, तो प्राथमिकता मिल सकती है।

यह जानकारी ECI की आधिकारिक गाइडलाइंस और पिछले चुनावों के उदाहरणों पर आधारित है। 🙏🙏

यदि सरकारी अधिकारी या कर्मचारी चुनाव ड्यूटी का बहाना बनाकर कार्यालय बंद रखते हैं, दरवाजा नहीं खोलते या नागरिकों को "चुनाव के बाद आना" कहकर भगा देते हैं, तो यह उनकी लापरवाही और ड्यूटी में कदाचार (misconduct) माना जा सकता है। भारत में सरकारी कर्मचारियों को केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 (CCS Conduct Rules) और केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 (CCS CCA Rules) के तहत अपनी ड्यूटी पूरी तरह निभानी होती है। चुनाव ड्यूटी केवल विशिष्ट दिनों (जैसे मतदान या मतगणना) पर लगती है, न कि पूरे चुनाव काल के लिए। अगर ड्यूटी नहीं लगी है, तो इसे झूठा बहाना बनाना गलत है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों (जैसे सूचना का अधिकार या सेवाओं का अधिकार) का उल्लंघन हो सकता है।

संभावित कार्रवाई क्या हो सकती है?

ऐसे मामलों में कार्रवाई विभागीय स्तर पर या कानूनी प्रक्रिया से हो सकती है। मुख्य प्रावधान और कार्रवाई के प्रकार निम्न हैं:

विभागीय जांच (Departmental Inquiry):

उच्च अधिकारी (जैसे विभाग प्रमुख या जिला मजिस्ट्रेट) शिकायत पर जांच करवा सकते हैं। अगर साबित हो कि कर्मचारी ने झूठा बहाना बनाया, तो CCS CCA Rules के तहत साधारण या प्रमुख दंड दिया जा सकता है।

संभावित दंड: चेतावनी, वेतन वृद्धि रोकना, पदावनति, या निलंबन (suspension)। गंभीर मामलों में बर्खास्तगी भी हो सकती है।789540

चुनाव आयोग के प्रावधान:

अगर कर्मचारी वास्तव में चुनाव ड्यूटी पर है, तो भी नियमित सरकारी सेवाएं पूरी तरह बंद नहीं हो सकतीं। चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार, ड्यूटी वाले कर्मचारी को अवकाश मिल सकता है, लेकिन विभाग को वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए। दुरुपयोग पर आयोग या जिला निर्वाचन अधिकारी कार्रवाई कर सकते हैं, जैसे जुर्माना या निलंबन। हालांकि, यह मुख्यतः चुनाव कार्य से जुड़े कदाचार पर लागू होता है।72cc9d

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आपराधिक कार्रवाई:

अगर यह बार-बार हो और नागरिकों को जानबूझकर परेशान किया जा रहा हो, तो IPC की धारा 166 (सार्वजनिक सेवक द्वारा कर्तव्य में विश्वासघात) या 341 (गलत तरीके से रोकना) के तहत FIR दर्ज हो सकती है। लेकिन यह दुर्लभ है और पहले विभागीय शिकायत जरूरी।

अन्य कानूनी कदम:

RTI (सूचना का अधिकार): कार्यालय से पूछें कि कर्मचारी की ड्यूटी क्या है। अगर झूठा बहाना साबित हो, तो मजबूत सबूत मिलेगा।

लोकपाल या लोकायुक्त: भ्रष्टाचार या लापरवाही की शिकायत के लिए।

उच्च न्यायालय: अगर सेवाएं पूरी तरह बंद हों, तो रिट याचिका दाखिल कर सकते हैं (अनुच्छेद 226 के तहत)।

नागरिक के रूप में आप क्या कर सकते हैं?

तत्काल शिकायत: कार्यालय के उच्च अधिकारी, जिला कलेक्टर (DM) या विभागीय हेड को लिखित शिकायत दें। सबूत (फोटो, वीडियो, समय) संलग्न करें।

हेल्पलाइन:

CM हेल्पलाइन (जैसे उत्तर प्रदेश में 1076, अन्य राज्यों में समान नंबर) पर कॉल करें।

केंद्रीय लोक शिकायत पोर्टल (CPGRAMS): https://pgportal.gov.in/ पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज करें। यह सीधे संबंधित विभाग को जाती है।

चुनाव काल में: जिला निर्वाचन अधिकारी को सूचित करें, अगर ड्यूटी का दावा गलत लगे।

ट्रैकिंग: शिकायत का स्टेटस ऑनलाइन चेक करें। अगर 30 दिनों में कोई कार्रवाई न हो, तो उच्च स्तर पर अपील करें।

ऐसी शिकायतें अक्सर काम करती हैं, क्योंकि चुनाव काल में प्रशासन सतर्क रहता है। 

 आचार संहिता (मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट - MCC) लागू होने के दौरान, चुनाव के दिन को छोड़कर, सरकारी कार्यालयों को बंद करने या काम रोकने का कोई प्रावधान नहीं है। आचार संहिता का उद्देश्य निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है, न कि सरकारी कार्यों को पूरी तरह ठप कर देना।

मुख्य बिंदु:

चुनाव का दिन (पोलिंग डे): प्रतिनिधित्व ऑफ द पीपल एक्ट, 1951 की धारा 135B के तहत, सरकारी कार्यालयों में छुट्टी होती है ताकि कर्मचारी मतदान कर सकें। यह एक पेड हॉलिडे है।

आचार संहिता की अवधि (चुनाव घोषणा से परिणाम तक): इस दौरान सरकारी कार्यालय सामान्य रूप से खुले रहते हैं और रूटीन काम चलता रहता है। हालांकि, कुछ प्रतिबंध लगते हैं:

मंत्रियों या सत्ताधारी दल द्वारा नई योजनाओं की घोषणा, लाभार्थी-केंद्रित कार्यों की समीक्षा/प्रक्रिया, या विज्ञापनों का जारी करना प्रतिबंधित है।

अस्थायी नियुक्तियां रोकी जाती हैं, और नियमित नियुक्तियां भी स्थगित हो सकती हैं।

सरकारी संसाधनों का चुनावी काम के लिए दुरुपयोग नहीं हो सकता।

यदि किसी कार्यालय द्वारा "चुनाव के बहाने" काम रोका जाता है, तो यह आचार संहिता का उल्लंघन हो सकता है, और चुनाव आयोग कार्रवाई कर सकता है। सामान्य प्रशासनिक काम (जैसे प्रमाण-पत्र जारी करना, रिकॉर्ड रखना) जारी रहना चाहिए।

अधिक जानकारी के लिए, चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट (eci.gov.in) पर MCC दिशानिर्देश देखें।

🙏👇👇👇👇👇👇👇👇👇 🙏 


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        संपादक श्री दयाशंकर गुुुप्ता जी


नोट........ 👉🙏


 दोस्तों उम्मीद करता हूं कि आप सभी, यह आर्टिकल को अंत तक पढ़े होंगे एवं यह आर्टिकल आपको बेहद पसंद आया होगा, हैं।और अगर लिखने में कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा करें इस के लिए हम आप क्षमा मांगते हैं और हमारे इस आर्टिकल को लाइक करें शेयर करें ? 🙏 जनहित लोकहित के लिए धन्यवाद 🙏

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