भगवान परशुराम, हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। उनकी कथा पुराणों, विशेष रूप से विष्णु पुराण, भागवत पुराण और महाभारत में वर्णित है। यहाँ उनकी कथा का संक्षिप्त और सरल वर्णन है:जन्म और प्रारंभिक जीवनपरशुराम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था। वे ऋषि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के पुत्र थे। उनका मूल नाम राम था,
भगवान परशुराम, हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। उनकी कथा पुराणों, विशेष रूप से विष्णु पुराण, भागवत पुराण और महाभारत में वर्णित है।
यहाँ उनकी कथा का संक्षिप्त और सरल वर्णन है:जन्म और प्रारंभिक जीवनपरशुराम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था। वे ऋषि जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका के पुत्र थे। उनका मूल नाम राम था,
लेकिन उनके पास परशु (कुल्हाड़ी) होने के कारण उन्हें परशुराम कहा गया। वे ब्राह्मण कुल में जन्मे, परंतु क्षत्रिय जैसा पराक्रम रखते थे।
परशुराम को भगवान शिव से विशेष शिक्षा और परशु प्राप्त हुआ था।माता-पिता के प्रति भक्तिएक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार उनकी माता रेणुका नदी में स्नान करने गईं और वहाँ गंधर्वराज चित्ररथ को देखकर क्षणिक मोह में पड़ गईं। इससे ऋषि जमदग्नि क्रोधित हुए और उन्होंने परशुराम को अपनी माता का वध करने का आदेश दिया।
परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए माता का सिर काट दिया। बाद में, पिता के प्रसन्न होने पर परशुराम ने वरदान माँगा और अपनी माता को पुनर्जनन दिया।क्षत्रियों का संहारपरशुराम की सबसे प्रसिद्ध कथा है क्षत्रियों के अत्याचार के खिलाफ उनका युद्ध। एक बार सहस्रार्जुन (कार्तवीर्य अर्जुन) नामक क्षत्रिय राजा ने परशुराम के पिता जमदग्नि की गाय कामधेनु चुराने की कोशिश की और उनके आश्रम को नष्ट कर दिया। क्रोधित परशुराम ने सहस्रार्जुन का वध किया। इसके बाद, सहस्रार्जुन के पुत्रों ने बदला लेने के लिए ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी।
इससे क्रोधित परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वे पृथ्वी को दुष्ट क्षत्रियों से मुक्त करेंगे। उन्होंने 21 बार पृथ्वी का भ्रमण किया और अधर्मी क्षत्रियों का संहार किया।महाभारत में योगदानपरशुराम महाभारत काल में भी जीवित थे, क्योंकि वे चिरंजीवी (अमर) हैं। उन्होंने भीष्म, द्रोण और कर्ण जैसे महान योद्धाओं को शस्त्र विद्या सिखाई। विशेष रूप से, कर्ण को उन्होंने ब्रह्मास्त्र का ज्ञान दिया,
लेकिन जब उन्हें पता चला कि कर्ण क्षत्रिय है, तो उन्होंने उसे श्राप दिया कि वह युद्ध के निर्णायक क्षण में यह विद्या भूल जाएगा।स्वभाव और विशेषताएँपरशुराम अपने तप, क्रोध और धर्म के प्रति निष्ठा के लिए जाने जाते हैं। वे ब्राह्मण-क्षत्रिय गुणों का अनूठा संगम हैं।
उनका परशु भगवान शिव द्वारा दिया गया था, और वे अपने गुरु के प्रति अटूट भक्ति के प्रतीक हैं।चिरंजीवी और आधुनिक संदर्भपुराणों के अनुसार, परशुराम अमर हैं और कलियुग के अंत में भगवान कल्कि के गुरु के रूप में पुनः प्रकट होंगे।
उनकी कथा आज भी लोगों को धर्म, कर्तव्य और माता-पिता के प्रति भक्ति का पाठ पढ़ाती है ?
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संपादक श्री दयाशंकर गुुुप्ता जी
नोट........
दोस्तों उम्मीद करता हूं कि आप सभी, यह आर्टिकल को अंत तक पढ़े होंगे एवं यह आर्टिकल आपको बेहद पसंद आया होगा, अगर लिखने में कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा करें जिसके लिए आप हमारे इस आर्टिकल को लाइक शेयर व कमेंट जरूर करेंगे । 🙏 जनहित लोकहित के लिए धन्यवाद 🙏
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