Skip to main content

हिंदू धर्म में तुलसी माता और शालिग्राम भगवान के विवाह का आयोजन करना बेहद शुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से विष्णुजी और मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं. इसके अलावा तुलसी विवाह संपन्न करवाने से कन्यादान के समान फल की प्राप्ति होती है.

 

  🙏👇  तुलसी विवाह पौराणिक कथा👇🙏

तुलसी विवाह पौराणिक कथा (Tulsi Vivah Pauranik Katha)

🛕🕉️*श्री गणेशाय नमः ओम नमः शिवाय ओम नमोः भगवते वासुदेवाय नमः*🕉️


एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहाँ से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, परंतु माँ ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गईं। देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत आवश्यक था।इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुँचे, जहाँ वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा। ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।भगवान ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का तनिक भी आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गये। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रम्हांड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर दे।वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहाँ वृंदा भस्म हुईं, वहाँ तुलसी का पौधा उगा।भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा: हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी।

 तब से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।उसी दैत्य जालंधर की यह भूमि जलंधर नाम से विख्यात है। सती वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। कहते हैं कि इस स्थान पर एक प्राचीन गुफा भी थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। सच्चे मन से 40 दिन तक सती वृंदा देवी के मंदिर में पूजा करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।जिस घर में तुलसी होती हैं, वहाँ यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते। मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। जो मनुष्य तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।

     🙏 👇 🌿  तुलसी विवाह 🌿👇🙏

देवउठनी एकादशी की 3 हैं कथाएं, जानिए पूजन विधि, श्री हरि को कैसे जगाएं

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन श्रीहरि विष्णु निद्रा से जागते हैं। यहां पढ़ें पौराणिक कथा- 

 

कथा- एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।

 

उस व्यक्ति ने उस समय 'हां' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे अन्न दे दो। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया। पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।

 

राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा। लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।


🙏  देव प्रबोधिनी एकादशी की व्रत कथा 2 🙏

एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। एकादशी को कोई भी अन्न नहीं बेचता था। सभी फलाहार करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गए। तभी राजा उधर से निकला और सुंदरी को देख चकित रह गया। उसने पूछा- हे सुंदरी! तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो?

 

तब सुंदर स्त्री बने भगवान बोले- मैं निराश्रिता हूं। नगर में मेरा कोई जाना-पहचाना नहीं है, किससे सहायता मांगू? राजा उसके रूप पर मोहित हो गया था। वह बोला- तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो।

सुंदरी बोली- मैं तुम्हारी बात मानूंगी, पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें खाना होगा।

 

राजा उसके रूप पर मोहित था, अतः उसने उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन एकादशी थी। रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। उसने घर में मांस-मछली आदि पकवाए तथा परोसकर राजा से खाने के लिए कहा। यह देखकर राजा बोला-रानी! आज एकादशी है। मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा।

 

तब रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोली- या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट लूंगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली- महाराज! धर्म न छोड़ें, बड़े राजकुमार का सिर दे दें। पुत्र तो फिर मिल जाएगा, पर धर्म नहीं मिलेगा।

इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया। मां की आंखों में आंसू देखकर वह रोने का कारण पूछने लगा तो मां ने उसे सारी वस्तुस्थिति बता दी। तब वह बोला- मैं सिर देने के लिए तैयार हूं। पिताजी के धर्म की रक्षा होगी, जरूर होगी। राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर असली बात बताई- राजन! तुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए।

 

भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वर मांगने को कहा तो राजा बोला- आपका दिया सब कुछ है। हमारा उद्धार करें। उसी समय वहां एक विमान उतरा। राजा ने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया और विमान में बैठकर परम धाम को चला गया।



देवउठनी एकादशी की एक प्रमुख कथा शंखासुर नामक राक्षस की है। शंखासुर ने तीनों लोकों में बहुत ही उत्पात मचाया हुआ था। तब सभी देवताओं के आग्रह करने पर भगवान विष्णु ने उस राक्षस से युद्ध किया और यह युद्ध कई वर्षों तक चला।

 

युद्ध में वह असुर मारा गया और इसके बाद भगवान विष्णु विश्राम करने चले गए। कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु की निद्रा टूटी थी और सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की थी।


 

शिव महापुराण के अनुसार पौराणिक समय में दैत्यों का राजा दंभ हुआ करता था। वह बहुत बड़ा विष्णु भक्त था। कई सालों तक उसके यहां संतान नही होने के कारण उसने शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाकर उनसे श्री कृष्ण मंत्र प्राप्त किया। यह मंत्र प्राप्त करके उसने पुष्कर सरोवर में घोर तपस्या की। भगवान विष्णु उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे संतान प्राप्ति का वरदान दे दिया।

 

भगवान विष्णु के वरदान से राजा दंभ के यहां एक पुत्र में जन्म लिया। इस पुत्र का नाम शंखचूड़ रखा गया। बड़ा होकर शंखचूड़ ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में घोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने को कहा। तब शंखचूड़ ने वरदान मांगा कि वह हमेशा अजर-अमर रहे व कोई भी देवता उसे नही मार पाए। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया और कहा कि वह बदरीवन जाकर धर्मध्वज की पुत्री तुलसी जो तपस्या कर रही है उससे विवाह कर लें। 

शंखचूड़ ने वैसा ही किया और तुलसी के साथ विवाह के बाद सुखपूर्वक रहने लगा।

 

उसने अपने बल से देवताओं, असुरों, दानवों, राक्षसों, गंधर्वों, नागों, किन्नरों, मनुष्यों तथा त्रिलोकी के सभी प्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली। वह भगवान श्रीकृष्ण का परम भक्त था। शंखचूड़ के अत्याचारों से सभी देवता परेशान होकर ब्रह्माजी के पास गए और ब्रह्मा जी उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गए। भगवान विष्णु ने कहा कि शंखचूड़ की मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से ही होगी, अतः आप उनके पास जाएं। भगवान शिव ने चित्ररथ नामक गण को अपना दूत बनाकर शंखचूड़ के पास भेजा। चित्ररथ ने शंखचूड़ को समझाया कि वह देवताओं को उनका राज्य लौटा दे। परंतु शंखचूड़ ने मना कर दिया और कहा कि वह महेश्वर से युद्ध करना चाहता है।


भगवान शिव को जब यह बात पता चली तो वे युद्ध के लिए अपनी सेना लेकर निकल पड़े। इस तरह देवता और दानवों में घमासान युद्ध हुआ। परंतु ब्रह्मा जी के वरदान के कारण शंखचूड़ को देवता नहीं हरा पाए। भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध करने के लिए जैसे ही अपना त्रिशूल उठाया, तभी आकाशवाणी हुई कि- जब तक शंखचूड़ के हाथ में श्रीहरि का कवच है और इसकी पत्नी का सतीत्व अखण्डित है, तब तक इसका वध असंभव है।

आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ के पास गए और उससे श्रीहरि कवच दान में मांग लिया। शंखचूड़ ने वह कवच बिना किसी संकोच के दान कर दिया। इसके बाद भगवान विष्णु शंखचूड़ का रूप बनाकर तुलसी के पास गए।

 

शंखचूड़ रूपी भगवान विष्णु ने तुलसी के महल के द्वार पर जाकर अपनी विजय होने की सूचना दी। यह सुनकर तुलसी बहुत प्रसन्न हुई और पतिरूप में आए भगवान का पूजन किया व रमण किया। ऐसा करते ही तुलसी का सतीत्व खंडित हो गया और भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ का वध कर दिया। 

तब तुलसी को पता चला कि वे उनके पति नहीं हैं बल्कि वे तो भगवान विष्णु है। क्रोध में आकर तुलसी ने कहा कि आपने छलपूर्वक मेरा धर्म भ्रष्ट किया है और मेरे पति को मार डाला। अतः मैं आपको श्राप देती हूं कि आप पाषण होकर धरती पर रहे।

 

तब भगवान विष्णु ने कहा- देवी। तुम मेरे लिए भारत वर्ष में रहकर बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो। तुम्हारा यह शरीर नदी रूप में बदलकर गण्डकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा। तुम पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी। तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण (शालिग्राम) बनकर रहूंगा।

गण्डकी नदी के तट पर मेरा वास होगा। देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम व तुलसी का विवाह संपन्न कर मांगलिक कार्यों का प्रारंभ किया जाता है। हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार इस दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह करने से अपार पुण्य प्राप्त होता है।


 👉🟦  आइए जानें कैसे करें व्रत-पूजन  👉 🪷

* देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाएं।

* पश्चात भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें।

 

* फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें। 

* देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण और भजन आदि का गायन करें।

 

* घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े और वीणा बजाएं।

 

* विविध प्रकार के खेल-कूद, लीला और नाच आदि के साथ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : -

 

'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।

त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'

'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।

गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'

'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'

 

इसके बाद विधिवत पूजा करें।

 

कैसे करें व्रत-पूजन :-

 

* पूजन के लिए भगवान का मन्दिर अथवा सिंहासन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्प और वंदनबार आदि से सजाएं।

 

* आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाएं, तत्पश्चात फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढंक दें तथा दीपक जलाएं।

 

* विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें।

 

* इसके बाद इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें : -

 

'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।

तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥'

 

पश्चात इस मंत्र से प्रार्थना करें : -

 

'इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।

त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना॥'


इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।

न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन॥'

 

साथ ही प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष,शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत, पंचामृत व प्रसाद वितरित करें। तत्पश्चात एक रथ में भगवान को विराजमान कर स्वयं उसे खींचें तथा नगर, ग्राम या गलियों में भ्रमण कराएं।

 

(शास्त्रानुसार जिस समय वामन भगवान तीन पद भूमि लेकर विदा हुए थे, उस समय दैत्यराज बलि ने वामनजी को रथ में विराजमान कर स्वयं उसे चलाया था। ऐसा करने से 'समुत्थिते ततो विष्णौ क्रियाः सर्वाः प्रवर्तयेत्‌' के अनुसार भगवान विष्णु योग निद्रा को त्याग कर सभी प्रकार की क्रिया करने में प्रवृत्त हो जाते हैं)। अंत में कथा श्रवण कर प्रसाद का वितरण करें। , ........ 


Tulsi Vivah 2023: तुलसी-शालीग्राम जी का ऐसे कराएं विवाह, जानें मुहूर्त, सामग्री, पूजा विधि

Tulsi Vivah 2023: तुलसी-शालीग्राम जी का ऐसे कराएं विवाह, जानें मुहूर्त, सामग्री, पूजा विधि


Tulsi Vivah 2023: कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को तुलसी-शालीग्राम जी का विवाह कराया जाएगा, इससे दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है. जानें तुलसी विवाह के मुहूर्त, विधि, मंत्र और सामग्री

तुलसी विवाह 2023

Tulsi Vivah 2023: हिंदू धर्म में जैसे सावन का महीना शिव को समर्पित है उसी तरह कार्तिक का महीना श्रीहरि की पूजा के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं और फिर अगले दिन द्वादशी तिथि पर उनका विवाह माता तुलसी से कराया जाता है.


तुलसी विवाह 23 नवंबर 2023 को है. मान्यता है कि तुलसी विवाह की परंपरा निभाने वालों को कन्यादान करने के समान फल प्राप्त होता है. हिंदू धर्म में कन्यादान को महादान की श्रेणी में रखा गया है. आइए जानते हैं तुलसी विवाह का मुहूर्त, सामग्री, पूजा विधि, मंत्र.

तुलसी विवाह 2023 मुहूर्त (Tulsi Vivah 2023 Muhurat)

तुलसी विवाह तारीख

24 नवंबर 2023 तक है

कार्तिक द्वादशी तिथि शुरू

23 नवंबर 2023 रात 09.01

कार्तिक द्वादशी तिथि समाप्त

24 नवंबर 2023, रात 07.06

अभिजित मुहूर्त

सुबह 11.46 - दोपहर 12.28

गोधूलि बेला

शाम 05.22 - शाम 05.49

सर्वार्थ सिद्धि योग

पूरे दिन

अमृत सिद्धि योग

सुबह 06.50 - शाम 04.01

तुलसी विवाह सामग्री (Tulsi Vivah Samagri)

तुलसी विवाह के लिए तुलसी का पौधा गमले सहित, शालिग्राम जी, गणेशजी की प्रतिमा, हल्दी की गांठ, श्रृंगार सामग्री, बेर, बताशा, सिंदूर, कलावा, लाल चुनरी, अक्षत,रोली, कुमकुम, तिल, फल, फूल, धूप-दीप, गन्ना, घी, सीताफल, आंवला, हल्दी, हवन सामग्री, मिठाई, कलश, सुहाग सामान- बिंदी, चूड़ी, मेहंदी, साड़ी, बिछिया आदि

तुलसी विवाह की विधि (Tulsi Vivah Puja Vidhi)

तुलसी विवाह घर के आंगन में कराना चाहिए. इसके लिए सूर्यास्त के बाद गोधूलि बेला का मुहूर्त चुनें. इसके लिए स्थान को अच्छी तरह साफ करें. गंगाजल छीटें. गोपर से लीपें.

अब तुलसी के गमले को दुल्हन की तरह सजाएं. पूजा की चौकी पर तुलसी का गमला रखें और उसमें शालीग्राम जी को बैठाएं.

अब एक कलश में जल भरकर रखें और उसमें पांच या फिर सात आम के पत्ते लगाकर पूजा स्थल पर स्थापित करें. दीप जलाएं. दोनों को तिल चढ़ाएं.

दूध में भीगी हल्दी शालीग्राम जी और तुलसी माता को लगाएं. विवाह की रस्में निभाते हुए मंगलाष्टक का पाठ करें.

अब तुलसी को लाल चुनरी ओढ़ाएं. कुमकुम, मेहंदी, सिंदूर और विष्णु जी के शालीग्राम रूप को आंवला, अक्षत अर्पित करें.

इस मंत्र का पाठ करें - महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते’

अब कपूर की आरती करें (नमो नमो तुलसा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)

11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें और भोग लगाएं और वैवाहिक जीवन में सुख सौभाग्य की कामना करें.


Budhwar Upay: बुधवार को करें ये खास उपाय, हर संकट रहेगा आपसे दूर, मिलेगी सुख-समृद्धि 


 Tulsi Vivah 2023: देवउठनी एकादशी के एक दिन बाद किया जाता है तुलसी विवाह, यहां जानें पूजा विधि

Tulsi Vivah 2023 Date माना जाता है कि जिस घर में तुलसी जी को रोजाना पूजा होती है उस घर में कभी दरिद्रता का वास नहीं होता। माना जाता है कि जो साधक देवउठनी एकादशी के विशेष मौके पर तुलसी माता और भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम जी का विवाह करवाता है उसके परिवार में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है


 Tulsi Vivah 2023 यहां जानें तुलसी विवाह की पूजा विधि।

देवउठनी एकादशी पर निद्रा से जागते हैं प्रभु श्री हरि।

भगवान विष्णु का ही स्वरूप हैं शालिग्राम जी।

द्वादशी पर किया जाता है शालिग्राम और तुलसी विवाह।

Tulsi Vivah Pujan Vidhi: सनातन धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत ही पवित्र और पूजनीय माना गया है। कार्तिक माह में आने वाली एकादशी जिसे देवउठनी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, इस विशेष दिन पर तुलसी का महत्व और भी बढ़ जाता है। क्योंकि इसके अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर तुलसी जी का शालिग्राम के साथ विवाह कराया जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं तुलसी विवाह की पूजा विधि।


तुलसी विवाह का मुहूर्त (Tulsi Vivah Puja Muhurat)

कार्तिक माह की द्वादशी तिथि 23 नवंबर रात 09 बजकर 01 मिनट से शुरू हो रही है। साथ ही इसका समापन 24 नवंबर को शाम 07 बजकर 06 मिनट पर होगा। ऐसे में तुलसी और शालिग्राम विवाह 24 नवंबर को करना शुभ रहेगा। ऐसे में इस दिन प्रदोष काल शाम 05 बजकर 25 मिनट से 06 बजकर 04 मिनट तक रहने वाला है।


🟢 👉 इस तरह करें पूजा 👈🕉️🔯✡️🔴

सबसे पहले तुलसी विवाह के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके बाद पूजा के स्थान को गंगाजल छिड़कर पवित्र कर लें। इसके बाद दो लकड़ी की चौकी बिछाएं और उसपर लाल रंग का आसन बिछाएं। एक कलश में गंगा जल भरें और उसमें आम के 5 पत्ते डालें, फिर इसे पूजा स्थान पर रख दें। एक आसन पर तुलसी का पौधा रखें और दूसरे आसन पर शालिग्राम जी को स्थापिक करें।

अब तुलसी के गमले पर गेरू लगाएं और तुलसी के समक्ष घी का एक दीपक जलाएं। इसके बाद तुलसी और शालिग्राम पर गंगाजल का छिड़काव करते हुए उन्हें रोली या फिर चंदन का टीका लगाएं। अब तुलसी के गमले में ही गन्नों की मदद से एक मंडप बनाएं। इसके बाद तुलसी माता का शृंगार करें और उन्हें लाल चुनरी पहनाएं। अब शालिग्राम जी को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी जी की 7 बार परिक्मा करें। अंत में आरती करें और तुलसी माता से परिवार की सुख-समृद्धि के लिए कामना करें। इसके बाद सभी लोगों में प्रसाद बांटे।



कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप और माता तुलसी का विवाह किया जाता है।


तुलसी (पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी, जिसका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में जन्मी यह बच्ची बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी। जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में ही दानव राज जलंधर से संपन्न हुआ।

राक्षस जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी। एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा.. स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं, आप जब तक युद्ध में रहेंगे, मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी। जब तक आप नहीं लौट आते मैं अपना संकल्प नहीं छोड़ूंगी।

जलंधर तो युद्ध में चला गया और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उसके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को न हरा सके। सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास पहुंचे और सभी ने भगवान से प्रार्थना की।

भगवान बोले, वृंदा मेरी परम भक्त है, मैं उससे छल नहीं कर सकता। इसपर देवता बोले कि भगवान दूसरा कोई उपाय हो तो बताएं लेकिन हमारी मदद जरूर करें। इस पर भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पहुंच गए।

वृंदा ने जैसे ही अपने पति को देखा तो तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिया। इधर, वृंदा का संकल्प टूटा, उधर युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया। जलंधर का कटा हुआ सिर जब महल में आ गिरा तो वृंदा ने आश्चर्य से भगवान की ओर देखा जिन्होंने जलंधर का रूप धर रखा था।

इस पर भगवान विष्णु अपने रूप में आ गए पर कुछ बोल न सके। वृंदा ने कुपित होकर भगवान को श्राप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं। इसके चलते भगवान तुरंत पत्थर के हो गए, सभी देवताओं में  हाहाकार मच गया। देवताओं की प्रार्थना के बाद वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया।

इसके बाद वे अपने पति का सिर लेकर सती हो गईं। उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा और कहा कि मैं इस पत्थर रूप में भी रहुंगा, जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा।

इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि किसी भी शुभ कार्य में बिना तुलसी जी के भोग के पहले कुछ भी स्वीकार नहीं करुंगा। तभी से ही तुलसी जी कि पूजा होने लगी। कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। साथ ही देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। ?🙏

            

   ❤️🌞 🙏🍁नोट :🍁🙏🪷🍁🔱 🟧   

लिखने में अगर कोई गलती हो तो क्षमा कीजिएगा, धन्यवाद सभी भारतवासियों को शुभकामनाएं और बहुत-बहुत बधाई🙏

🙏👇👇👇👇👇👇👇👇👇🙏

            देश मेरा वतन समाचार पत्र 

         संपादक श्री दयाशंकर गुुुप्ता जी🌹🍀☘️🌙👉🕉️🔯✡️🔴🟢🟣🟩💙🩵🖊️💐

Comments

Popular posts from this blog

30 सितंबर से 31 अक्टूबर 2024 तक बढ़ा दिया गया हैतक कर लें राशन कार्ड की E-KYC, वरना नहीं मिलेगा फ्री राशन ?

 महाराष्ट्र जिला ठाणे भिवंडी शहर में राशन कार्ड   E-KYC करवाले और व सभी राज्यों में भी नगरीकों E-KYC करें 30 सितंबर से  31 अक्टूबर 2024 तक बढ़ा दिया गया है तक कर लें राशन कार्ड की E-KYC, वरना नहीं मिलेगा फ्री राशन  अगर जिन्होंने राशन कार्ड में ई केवाईसी नहीं किया तो नाम डिलीट हो सकते हैं जल्द से जल्द अपने नजदीकी राशन दुकान पर जाकर ई केवाईसी करवा ले अगर राशन कार्ड में ई केवाईसी नहीं करवाते हैं तो उसकी जवाबदारी खुद राशन कार्ड धारक होगा ?  घर से दूर रहने वालों की नहीं हो रही है ई-केवाईसी, अब परिवारों को राशन बंद होने का डर घर से दूर रहने वालों की नहीं हो रही है ई-केवाईसी, अब परिवारों को राशन बंद होने का डर जिन लोगों के फिंगर प्रिंट या आई स्कैन नहीं हो पा रहे हैं उनके लिए अलग से कोई गाइडलाइन नहीं है. बच्चों के आधार कार्ड राशन कार्ड से लिंक नहीं हैं. उनकी भी ई-केवाईसी नहीं हो रही है. ओटीपी सिस्टम भी नहीं है. घर से दूर रहने वालों की नहीं हो रही है ई केवाईसी, अब परिवारों को राशन बंद होने का डर  सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना में चयनित उपभोक्ताओं के लि...

बदल गए राशन कार्ड के सभी नियम, नए नियम जारी

 बदल गए राशन कार्ड के सभी नियम, नए नियम जारी  भारत सरकार द्वारा राशन कार्ड धारकों को समय-समय पर फ्री राशन प्रदान किया जाता है, लेकिन हाल ही में सरकार ने राशन वितरण के नियमों में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। अगर आप भी राशन कार्ड धारक हैं और फ्री राशन का लाभ उठाते हैं, तो यह बदलाव जानना आपके लिए बहुत जरूरी है। सरकार ने राशन वितरण प्रणाली में सुधार के लिए यह बदलाव किए हैं, ताकि इस योजना को और अच्छा बनाया जा सके। नए नियमों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी सरकार ने राशन वितरण प्रणाली में जो बदलाव किए हैं, उसके अंतर्गत सभी उपभोक्ताओं को समय पर अपना राशन लेना अनिवार्य होगा। अब राशन कार्ड धारकों को निर्धारित समय सीमा के भीतर ही अपना राशन प्राप्त करना होगा, अन्यथा वे उस महीने का राशन प्राप्त नहीं कर सकेंगे। यह एक महत्वपूर्ण निर्देश है जिसे केंद्र और राज्य सरकार ने लागू किया है। राशन वितरण में बदलाव पहले राशन उपभोक्ता कुछ महीने तक अपना राशन नहीं लेते थे और बाद में एक साथ दो या तीन महीने का राशन प्राप्त कर सकते थे। लेकिन नए नियमों के तहत यह संभव नहीं होगा। अब उपभोक्ताओं को हर महीने अपना निर्ध...

Aadhar Npci Link Benefits

 आधार एनपीसीआई बैंक खाते में लिंक कैसे करें देखिए  अगर आप भारतीय नागरिक है तो आपके पास आधार कार्ड जरूर होगा और आपके आधार कार्ड में आपका कौन सा बैंक खाता जुड़ा है या अभी तक नहीं जुड़ा है तो कैसे घर बैठे ही बैंक खाता आधार के साथ लिंक कर सकते हैं  इसकी पूरी प्रक्रिया आज हम आपको विस्तार से बताने वाले हैं अगर आपका कोई सा भी बैंक है तो आप ऑनलाइन घर बैठे ही आधार एनपीसीआई से लिंक कर सकते हैं, आज हम आपको ऑनलाइन घर बैठे बैंक खाते में आधार एनपीसीआई और डीबीटी चालू करने का तरीका बताने वाले हैं अब आप अपने किसी भी बैंक को आधार के साथ लिंक कर सकते हैं, अगर आपके पास एक से अधिक बैंक खाते हैं तो आप अपने हिसाब से कोई सा भी बैंक खाता आधार के साथ एनपीसीआई माध्यम से लिंक कर सकते हैं, Aadhar Npci Link Benefits  बैंक खाते में आधार एनपीसीआई लिंक करने से सरकार के द्वारा दिया गया सभी सरकारी फायदा पहुंच जाता है यानी बैंक खाते में आसानी से प्राप्त हो जाता है और आधार के माध्यम से लेनदेन हो सकता है और आधार से संबंधित कोई भी ट्रांजैक्शन किया जा सकता है इसी वजह से बैंक खाते में आधार एनपीसीआई लिंक करन...