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संत फिलोमिना कॉलेज की फिलो हिंदी क्लब, हिंदी विभाग मैसूरु द्वारा आयोजित "राष्ट्रीय साप्ताहिक व्याख्यान माला" कार्यक्रम विभागाद्यक्ष डॉ पूर्णिमा उमेश के नेतृत्व में हुआ। "हिंदी कविता के विविध आयाम" विषय आयोजित व्याख्यान माला में देश के वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षकगण इस वक्ता के रूप में उपस्थित रहे ।

 संत फिलोमिना कॉलेज की फिलो हिंदी क्लब, हिंदी विभाग मैसूरु द्वारा आयोजित "राष्ट्रीय साप्ताहिक व्याख्यान माला" कार्यक्रम विभागाद्यक्ष डॉ पूर्णिमा उमेश के नेतृत्व में हुआ। "हिंदी कविता के विविध आयाम" विषय आयोजित  व्याख्यान माला में देश के वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षकगण इस वक्ता के रूप में उपस्थित रहे । 



व्याख्यानमाला का शुभारंभ 8 जुलाई को कॉलेज के सभागार में वर्चुअल रूप में हुआ । कॉलेज के रेक्टर मैनेजर डॉ बरनार्ड प्रकाश वार्निश, वॉइस रेक्टर फादर मरिया जेवियर, कैम्पस एडमिनिस्ट्रेटर  फादर जॉन पौल, प्राचार्य डॉ ऑलफोंसुस डिसूजा, उप प्राचार्य श्री विद्याधर संजय नायर, पीजी डायरेक्टर ऑर्थबर्थ पिंटो ई क्यू ए सी कोओरर्डिनेटर  प्रकाश कुटीनो आदि उपस्थित थे।  


 प्रथम सत्र 8 जुलाई 2021 को "श्री नरेंद्र सिंह नीहार"जी, वरिष्ठ कवि एवं लेखक तथा हिंदी की गूँज संस्था के संस्थापक एवं संयोजक,  प्रवक्ता राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र , नई दिल्ली। प्रतिभागियों को "आधुनिक कविताओं में राष्ट्रीय चेतना के स्वर" विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि-- 

 मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं।

 अंधकार है वहाँ, जहाँ आदित्य नहीं।



 राष्ट्रीय चेतना और देश प्रेम से ओतप्रोत अपने व्याख्यान में नीहार जी ने भारतेन्दु युग से लेकर सम्प्रति कवियों की कलम से निकली काव्य रचनाओं के मोतियों को चुन चुन कर क्रमबद्ध कर बड़े सुन्दर ढंग से बताया। उनका बहुआयामी व्याख्यान  बहुत ही ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी रहा। उन्होंने बड़े ही प्रभावशाली ढंग से राष्ट्र चेतना के अर्थ को उद्घाटित करते हुए कहा कि आजादी के पहले झंडा उठाकर देश की आजादी के लिए नारे लगाना राष्ट्रीय चेतना की मुखर अभिव्यक्ति थी मगर आजादी मिलने के बाद देश की एकता, अखंडता, पर्यावरण, स्वच्छता, भ्रष्टाचार उन्मूलन और समस्त नागरिकों के कल्याण को सुनिश्चित करना ही राष्ट्रीय चेतना कहा जा सकता है।आधुनिक हिन्दी कविता  के सिरमौर मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, शिवमंगल सिंह सुमन, दुष्यंत कुमार, भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र की कविताओं के साथ-साथ मुंशी प्रेमचंद जी की रचनाओं का भी उल्लेख किया, जिसने सभी को अपने पढ़ाई के समय की पुरानी स्मृतियों से जोड़ दिया । नीहार जी ने जिस तरह से हिन्दी साहित्य में कविता के स्थान तथा महत्व को बताया वर्तमान समय में आवश्यकता है ऐसे वक्तव्य की, हिन्दी साहित्य में विद्यार्थियों की रूचि      बढाने के लिए।

राष्ट्रीय साप्ताहिक व्याख्यानमाला का दूसरा सत्र 15 जुलाई 2021 को आयोजित किया गया जिसमें वक्ता के रूप में डॉ रवि कुमार मधुप एसोसिएट प्रोफेसर श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स दिल्ली विश्वविद्यालय से अपने विषय

“प्रकृति सौंदर्य का पुंज है छायावाद काव्य” के साथ  प्रस्तुत थे।

जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य 'कामायनी' की प्रारंभिक पंक्तियाँ उद्धृत करते हुए उन्होंने प्रकृति के जड़-चेतन रूप का उल्लेख किया -

 हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर,

 बैठ शिला की शीतल छाया|

 एक पुरुष भीगे नैनों से

 देख रहा था प्रलय-प्रवाह|


 इसी क्रम में सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला' की वसंत, संध्या सुंदरी, जूही की कली, स्नेह निर्झर बह गया , बादल राग आदि कविताओं से उदाहरण देकर कवि द्वारा प्रस्तुत प्रकृति के विविध रंगों का चित्रण किया| बादल राग की ये पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं –

 झूम-झूम मृदु गरज-गरज घनघोर! 

राग अमर! अंबर में भर निज रोर!

 कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा चित्रित प्रकृति के वसंत रजनी, हे चिर महान, लाए कौन संदेश नए घन, मैं नीर भरी दुख की बदली आदि कविताओं के उद्धरण से डॉ. मधुप ने छायावादी प्रकृति सौंदर्य के एक अनुपम पक्ष को वर्णित किया|


 प्रकृति के चतुर चितेरे कवि सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित ‘रश्मिबंध’ काव्य-संग्रह की भूमिका से उद्धृत ये पंक्तियाँ पंत जी के जीवन में प्राकृतिक सौंदर्य के संस्कारों के बीज-वपन का संकेत देती हैं -"मेरे किशोर-प्राण मूक कवि को बाहर लाने का सर्वाधिक श्रेय मेरी जन्मभूमि के उस नैसर्गिक सौंदर्य को है, जिसकी गोद में पलकर मैं बड़ा हुआ हूँ| प्रकृति-निरीक्षण और प्रकृति-प्रेम मेरे स्वभाव के अभिन्न अंग ही बन गए| उषा, संध्या, फूल, कोंपल, कलरव, मर्मर और नदी-निर्झर मेरे किशोर मन को सदैव अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं|"  

 सत्र के अंत में श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए उन्होंने छायावादी काव्य में वर्णित प्रकृति सौंदर्य को हिंदी का सर्वश्रेष्ठ अंश कहा तथा आज के कृत्रिम जीवन में प्रकृति और पर्यावरण रक्षा का संदेश भी दिया| एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’ ने ‘कामायनी’ की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए वर्तमान संदर्भ में उस पर विशेष चर्चा की आवश्यकता पर बल दिया| लगभग डेढ़ घंटा चले इस आयोजन में  लगभग 300 विद्यार्थियों, प्राध्यापकों, ‘हिंदी की गूँज’ के संयोजक नरेंद्र सिंह नीहार,डाॅ ममता श्रीवास्तवा, तरुणा पुंडीर, खेमेद्र सिंह आदि ने भाग लिया| श्रोताओं की उत्साहवर्धक टिप्पणियों से इस पूरे आयोजन की सार्थकता स्वत: सिद्ध हो गई। 


 'राष्ट्रीय साप्ताहिक व्याख्यान माला, के तृतीय सत्र का आयोजन 22 जुलाई 2021 को हुआ । डॉ. विनोद ‘प्रसून’, वरिष्ठ कवि एवं लेखक संसाधक सीबीएसई-सीओई, हिंदी विभागाध्यक्ष दिल्ली पब्लिक स्कूल, ग्रेटर नोएडा (उ.प्र)  इस कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता के रूप में उपस्थित थे । विषय रहा “हिंदी काव्य का भावात्मक पक्ष : सृजन, संवेदना, सौहार्द, सरसता की प्रेरणा।"


डॉ विनोद प्रसून जी ने अपने व्याख्यान के द्वारा काव्य के भावनात्मक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए संत कबीर दास, रैदास, नागार्जुन, माखनलाल चतुर्वेदी और आज के आधुनिक  कवियों की कालजयी रचानाओं का स्मरण किया। उन्होंने कहा कि-कविता में शिल्प का ध्यान होना चाहिए लेकिन भावनात्मक पक्ष, भावपूर्णता, निश्चित रुप से बहुत आवश्यक है। 

काव्य शब्द में समाहित है कल्पनाशीलता, करुणिमता, कर्तव्यभूत, कौशल्य आदि । कवि आत्मसाक्षात्कार कर उसे लेखनी और कागज से उतारता है तो वह अमरवाणी बन जाती है। उन्होंने कहा

"साहित्य स्नेहीलता, सौहार्द सरसता देता है

सद्भावोका सहचर है यह छू लेता संवेदना।"


प्रश्नोंत्तर सत्र में विद्यालय के निशा एम, रिया कुमारी, अमित कुमार, राम कुमार पांडेय, सरस्वती आदि  ने अपनी रचानाओं के साथ-साथ अपने प्रश्नों को वक्ता के सम्मुख रखा । विनोद जी ने बहुत ही सार्थक रूप सभी प्रश्नों का उत्तर देते हुए सभी विद्यार्थियों की प्रशंसा की। 



29 जुलाई 2021 को राष्ट्रीय सप्ताहिक व्याख्यानमाला का चौथा और आखिरी व्याख्यानमाला आयोजित की गई है। देश की वरिष्ठ कवयित्री एवं प्रोफेसर डॉ लता चौहान जी इस सत्र की वक्ता के रूप में उपस्थित थीं। "गोपाल  दास  नीरज और दुष्यंत  कुमार  की गजलों  में  विरह वेदना  चित्रण" विषय के ऊपर उन्होंने प्रकाश डाला और प्रतिभागियों को बताया की

" स्वप्न झरे फूल से मीत चुभे शूल से 

लुट गए सिंगार सभी भाग के बाबुल से और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे

 करवा गुजर गया गुबार देखते रहे 

       गोपालदास नीरज जी की इन पंक्तियों से पाठकों के मन में विरह वेदना के रस भरती गई ।

और 

"हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

 यह दुष्यंत दुष्यंत कुमार जी के पंक्तियों से उन्होंने पाठकों को इन दोनों कवियों के गजलों में रहे विरह वेदना के बारे में प्रकाश डालने की कोशिश  की। प्रश्नोत्तरी सत्र भी सर्तक रूप से पूर्ण हुआ।


अंत में व्याख्यानमाला का समापन समारोह आयोजित हुआ। कॉलेज के आयोजन मंडली के साथ मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफ़ेसर एमसी प्रभा जी उपस्थित थी ।कार्यक्रम में "नरेंद्र सिंह निहार जी का कोरोना कालीन साहित्य: संदर्भ एवं विमर्श" डॉ पूर्णिमा उमेश द्वारा लिखित पुस्तक का लोकार्पण भी हुआ और विभागाध्यक्ष डॉ पूर्णिमा उमेश ने सभी का वंदनार्पण किया। ?

           👇👇👇👇👇👇👇👇👇                                मेरा देश मेरा वतन समाचार पत्र के

                                  
             संंपादक श्री दयाशंकर गुुुप्ता जी  



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